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आ जाओ फिर से लौट के इक शाम के लिए

दिल की बातें दिल से
दिल की बातें दिल से
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दिल के सुकून चैन ओ आराम के लिए
आ जाओ फिर से लौट के इक शाम के लिए

अब तो तिरे ख़याल में रहता हूँ रात दिन
मिलता कहाँ है वक़्त किसी काम के लिए

इस मैकशी नज़र से मिलाकर नज़र कहूँ
दिल जान जिगर ले लो बस इक जाम के लिए

रावन के भी बहुत से तरफ़दार हो गए
मुश्किल हुई है राह भी अब राम के लिए

तुमपे भला लगाऊँ क्यूँ इल्ज़ाम क़त्ल का
तुम तो महज़ बहाना थे इस काम के लिए

‘सूरज’ गवां दी तूने तो गफलत में ज़िंदगी
बख़्शी थी जो ख़ुदा ने किसी काम लिए

डॉ सूर्या बाली ‘सूरज’

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