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कौन आकर डाल देता है नमक फिर घाव में

दिल की बातें दिल से
दिल की बातें दिल से
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अब दरारें पड़ रही हैं आपसी सदभाव में॥


मिट रही इंसानियत है मज़हबी टकराव में॥



वक़्त के मरहम से जब भी दर्द हो जाता है कम,


कौन आकर डाल देता है नमक फिर घाव में॥



आंधियाँ तूफ़ान गर्मी और सूनामी बढ़ीं,


जीना मुश्किल हो रहा है मौसमी बदलाव में॥



बाप माँ के बीच अनबन है तो इनका दोष क्या,


पिस रहे मासूम जो परिवार के अलगाव में॥



देश की पतवार है अब जाहिलों के हाथ में,


कौन ख़तरा मोल लेगा डगमगाती नाव में॥



किसको फुर्सत है यहाँ जो क़द्र रिश्तों की करे,


टूट जाएँगे घराने आपसी बिखराव में॥



चार दिन की ज़िंदगी “सूरज” न इतना नाज़ कर,


कुछ नहीं रखा है झूंठी शान झूँठे ताव में॥


डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”

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