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दिल कश्मकश में रहता है अब रात रात भर

दिल की बातें दिल से
दिल की बातें दिल से
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दिल कश्मकश में रहता है अब रात रात भर।

इक जंग ख़ुद से लड़ता है अब रात रात भर॥


लिख लिख के उसका नाम मिटाता हूँ बार बार,

यादों में वो ही बसता है अब रात रात भर॥


लगता है धड़कनों का कोई हमसफ़र तो है,

जो साथ उनके चलता है अब रात रात भर॥


दिल को न जाने आज भी किसकी है आरजू,

किसकी तलाश करता है अब रात रात भर॥


सोचा था जिनके साथ न बीतेगा एक पल,

पाला उन्हीं से पड़ता है अब रात रात भर॥


दिल को न जाने क्या हुआ महफिल में बैठकर,

तन्हाइयों से लड़ता है अब रात रात भर॥


हिस्से में कितना प्यार मिला कितनी बेरुख़ी,

“सूरज”  हिसाब करता है अब रात रात भर॥


डॉ. सूर्या बाली “सूरज”

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