दिल की बातें दिल से
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मुझको बता रहा है मेरी हद वो आजकल।
लगता है भूल बैठा है मक़्सद वो आजकल॥
उसका मुझे परखने का अंदाज़ देखिये,
लीटर से नापता है मेरा क़द वो आजकल॥
हल्के हवा के झोंके भी जो सह नहीं सका,
कहता फिरे है अपने को अंगद वो आजकल॥
अदना सा एक दाना जो मिट्टी में मिल गया,
तन के खड़ा है दुनिया में बरगद वो आजकल॥
अंदाज़ जश्न का भी अलग उसका है बहुत,
मुझको रुला के होता है गदगद वो आजकल॥
रिश्तों की बात करता नहीं है किसी से वो,
घायल हुआ है अपनों से शायद वो आजकल॥
कल तक पकड़ के चलता था जो मेरी उँगलियाँ,
कहने लगा है अपने को अमजद वो आजकल॥
जिसे अपनी ज़िंदगी का ही मक़्सद नहीं पता,
पहुंचा रहा है औरों को संसद वो आजकल॥
“सूरज” बना के उससे ज़रा दूरियाँ रखो,
झुक झुक के कर रहा हैं ख़ुशामद वो आजकल॥
डॉ. सूर्या बाली “सूरज”
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