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जागरण जंक्शन के सभी मित्रो को मेरा सादर नमस्कार। पाँच महीने से अधिक अंतराल के बाद कुछ मित्रों का आदेश मानना ही पड़ा। पेश है एक ग़ज़ल:
ग़ज़ल
गर्दिश में मुफ़लिसों का सितारा है इन दिनों।
बाज़ार ने गरीबों को मारा है इन दिनों॥
मुरझा रहे हैं फूल से बच्चे जो धूप में,
कूड़ा कबाड़ उनका सहारा है इन दिनों॥
जम्हूरियत ने लूट ली इज्ज़त और आबरू,
सहमा हुआ ये देश हमारा है इन दिनों॥
वो कब का थक के हार गया ज़िंदगी की जंग,
इंसाफ के मंदिर में जो हारा हैं इन दिनों॥
दहशत धमाके आगजनी लूट मार काट,
हर सम्त हादसों का नज़ारा है इन दिनों॥
काँटों भरी है राह मगर चल रहे हैं हम,
रस्ता भी अँधेरे में हमारा है इन दिनों॥
रोटी मकान कपड़े नहीं काम भी नहीं,
हालात से हर आदमी हारा है इन दिनों॥
बर्फ़ीली वादियाँ भी हवाले हैं आग के,
ख़तरे में डल वुलर का सिकारा है इन दिनों॥
“सूरज” बड़े लगन से सियासी कमाल ने,
कागज़ पे रामराज उतारा है इन दिनों॥
डॉ. सूर्या बाली “सूरज”
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