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उजाड़ सकता है घर वो बना नहीं सकता

दिल की बातें दिल से
दिल की बातें दिल से
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उजाड़ सकता है घर वो बना नहीं सकता॥

बना तो लेता है रिश्ते निभा नहीं सकता॥

मकान उसका भी शीशे का बना है यारों,

मुझे पता है वो पत्थर उठा नहीं सकता॥

चुरा तो सकता है वो ज़र1 जमीन को मेरी,

हुनर हमारा मगर वो चुरा नहीं सकता॥

हो खोट दिल में रक़ाबत2 हो जिसके सीने में,

किसी से नज़रें कभी वो मिला नहीं सकता॥

हबीब3 बन के ख़ुदा साथ खुद रहे जिसके,

जहां में कोई भी उसको झुका नहीं सकता॥

दीवार बन के खड़ा है वो मेरी राहों में,

वो समझता है उसे मैं गिरा नहीं सकता॥

उसे हमारी फ़िक्र हो न हो कभी “सूरज”

मैं उसकी यादों को दिल से मिटा नहीं सकता॥

डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”


1. ज़र=दौलत, संपत्ति 2. रक़ाबत= ईर्ष्या 3. हबीब= मित्र

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