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जब से रफ़्तार मे ये शहर हो गया

दिल की बातें दिल से
दिल की बातें दिल से
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जब से रफ़्तार मे ये शहर हो गया॥

रिश्ते नाते बिखरने का डर हो गया ॥


उँगलियाँ थाम कर चलता था जो कभी,

आज मेरा वही राहबर हो गया॥


वो परेशान दुनिया से था इस क़दर,

इसलिए मयकदा उसका घर हो गया॥


इक कदम क्या ग़लत राह मे उठ गया,

खो गईं मंज़िलें, दर बदर हो गया॥


सब गए भूल इंसानियत का सबक़,

जाति मज़हब का ऐसा असर हो गया॥


दो कदम क्या चला साथ मिलके मेरे ,

उसको लगने लगा हमसफर हो गया॥


झूँठ कहता था जब, कारवां साथ था,

सच जो बोला तो तन्हा सफर हो गया॥


क्यूँ गिला दुश्मनों से ये “सूरज” करें,

ग़ैर अपना ही लख़्त-ए-जिगर हो गया॥

डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”

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