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किसी से प्यार करने का कोई मौसम नहीं होता।
इरादा नेक हो तो दिल कभी बरहम1 नहीं होता॥
तुम्हारी बेवफ़ाई का अगर मौसम नहीं होता॥
तो ज़ालिम आज मेरा नोक-ए-मिज़्गाँ2 नम नहीं होता॥
तुम्हारी याद ने दिल को मेरे आबाद3 रखा है॥
मेरी दुनिया मे अब तनहाई का आलम4 नहीं होता॥
मोहब्बत ज़ख्म दे दे कर जिगर को चाक5 करती है,
ये ऐसा दर्द है जिसका कोई मरहम नहीं होता॥
अमीर-ए-शहर6 की दुनिया हो, या दुनिया हो ग़रीबों की,
मोहब्बत का ये पैमाना ज़ियादा कम नहीं होता॥
दरिंदों को अगर होता ज़रा भी प्यार इंसाँ से,
तो खुशियों के शहर मे मौत का मातम नहीं होता॥
कभी न चूमती मंज़िल कदम, बढ़कर के राहों मे,
अगर ख़ुद पे भरोसा, बाज़ुओं मे दम नहीं होता॥
अगर वो बेवफ़ाई मुझसे न करता कभी “सूरज”,
तो उसके प्यार मे खुश रहता रंजो-ग़म7 नहीं होता॥
डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”
1॰= बरहम=बेचैन 2. नोक-ए-मिज़्गाँ=पलकों के कोना 3.=आबाद= खुशहाल, सम्पन्न 4.आलम=स्थिति 5. चाक =चीर देना, फाड़ देना 6. अमीरे शहर= नगर का धनी आदमी 7. रंजो-ग़म= दुख-दर्द
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