दिल की बातें दिल से
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दिल तोड़ के गया वो किसी अजनबी के साथ।
हमने गुज़ारे वक़्त बड़ी बेबसी के साथ॥
क्यूँ जाने मेरी बन न सकी ज़िंदगी के साथ,
गुज़री है पूरी उम्र इसी दोगली के साथ॥
रंगीनियों ने इस क़दर धोका दिया उसे,
रहने लगा वो शख़्स बड़ी सादगी के साथ॥
अफ़साना कैसे कैसे बनाने लगे है लोग,
मिलना तुम्हारा ठीक नहीं हर किसी के साथ॥
उसको मसलना इस तरह आसान नहीं है,
हैं कितने सारे कांटे भी देखो कली के साथ ॥
अब अपने ग़मों की मुझे परवाह है कहाँ,
जीता हूँ रात दिन मैं उसी की खुशी के साथ॥
दौलत ने इस क़दर उसे अंधा बना दिया,
रिश्ता न कभी जोड़ सका आदमी के साथ॥
पैकर हूँ रोशनी का मैं “सूरज” इसीलिए,
मेरी कभी निभी ही नहीं तीरगी के साथ॥
डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”
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