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घबरा गए अगर तो कहीं के न रहोगे

दिल की बातें दिल से
दिल की बातें दिल से
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घबरा गए अगर तो कहीं के न रहोगे।

मरने से गए डर तो कहीं के न रहोगे॥

इंसानियत के बीच मे नफ़रत को न लाओ,

फैलेगा ये ज़हर तो कहीं के न रहोगे॥

ये मोमिनों ख़ुदा को तो रुसवा न कीजिये,

टूटेगा जब क़हर तो कहीं के न रहोगे॥

है अब भी बचा मौक़ा कर तौबा गुनाहों से,

गया वक़्त जो गुज़र तो कहीं के न रहोगे॥

इतना यक़ीन मत करो उसकी वफ़ा पे तुम ,

हुआ बेवफ़ा अगर तो कहीं के न रहोगे ॥

चैन-ओ-अमन मे जी रहा हर एक आदमी,

उजड़ा जो ये शहर तो कहीं के न रहोगे॥

मुंसिफ़ के सामने है खड़ा क़त्ल का गवाह,

जाएगा वो  मुक़र तो कहीं के न रहोगे॥

ये दोस्तों शराब को ज्यादा न पीजिए,

फूंकेगी ये जिगर तो कहीं के न रहोगे॥

ऊंची उड़ान भरने से पहले तू सोच ले,

“सूरज” जो टूटा पर तो कहीं के न रहोगे॥

डॉ॰सूर्या बाली “सूरज”

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