दिल की बातें दिल से
- 47 Posts
- 1463 Comments
निकाला मन का भरम पुतला बनाकर तुमने।
तसल्ली दिल को दी रावण को जलाकर तुमने॥
खेलते जा रहे हो खेल ये सदियों से मगर,
किया कुछ भी नहीं हासिल ये दिखाकर तुमने॥
झूँठ पे सच की है ये जीत यही कह कह के,
तमाशा फिर किया इस बार भी आकर तुमने॥
गिनाते रह गए रावण की बुराई को मगर,
देखा ख़ुद को नहीं आईना उठाकर तुमने॥
धमाका, धूल, धुआँ, शोरगुल मचा कर के,
छीना चैन-ओ-अमन भी नींद उड़ाकर तुमने॥
मज़हबी भीड़ को बहला के और भड़का के,
डाल दी नफ़रतें ज़ज़्बात भुनाकर तुमने॥
कागजों से बने पुतले तो जला डाले मगर,
दिल मे क्यूँ रखा है रावण को छुपाकर तुमने॥
ग़रीबी, भुखमरी, मंहगाई औ बदअम्ली को,
खड़ा कर रखा है घर- घर में सजाकर तुमने॥
सियासत हावी है मज़हब के मंच पर “सूरज”
मांगे खुब वोट रामलीला मे जाकर तुमने॥
डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”
Read Comments