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क्या हुआ है मुझे आजकल ये, क्यूँ जमीं पर उतरता नहीं हूँ

दिल की बातें दिल से
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क्या हुआ है मुझे आजकल ये, क्यूँ जमीं पर उतरता नहीं हूँ॥

बादलों सा फिरूँ आसमां मे, क्यूँ कहीं पर ठहरता नहीं हूँ॥

उसको लगता था जी न सकूँगा, उसके बिन भी मैं रह न सकूँगा॥

अब जहां पे ठिकाना है उसका, उस गली से गुजरता नहीं हूँ॥

कोई नेता हो चाहे मिनिस्टर, कोई मुंसिफ़ हो चाहे कमिश्नर,

जो मुझे भूल जाते है अक्सर, मैं उन्हे याद करता नहीं हूँ ॥

चाहे कितना भी मुझको सता ले, और जी भर के मुझको रुला ले,

पत्थरों की तरह हो गया हूँ, टूट कर अब बिखरता नहीं हूँ॥

बज़्म मे कल हमारी वो आया, जाम नज़रों से कुछ यूं पिलाया,

बेखुदी छाई अब तक उसी की, उस नशे से उबरता नहीं हूँ॥

छोड़ कर तू गया था जहां पे, आज भी मैं खड़ा हूँ वहीं पे,

कह दिया जान दे दी तो दे दी, मैं जुबां से मुकरता नहीं हूँ॥

अपनों ने ही मुझे है हराया, गैर तो हर वक़्त मात खाया,

खौफ़ खाता हूँ अपनों से “सूरज”, ग़ैर से मै तो डरता नहीं हूँ॥

डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”

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